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भोली सूरत
भोली सूरत पे तेरे हाय
दिल लगा बैठे हम
बेवफ़ाई को तेरे ऐ जालीम
वफ़ाई समझ बैठे हम
अब सोचते हैं ऐ कम्बख्त
क्या हिमाकत कर बैठे हम
फूल समझके जिसको चूम लेते थे हम
उसमें तो सिर्फ बाहरी रंगत निकली
खुशबू के लिए तरसते रह गये हम
चांदपे जिस नज़र लगाये बैठे थे हम,
रोशनीका वो मामुली गोला निकला,
ठंडक की आसमें झुलसते रह गये हम
सूरत-ए-हाल अब ये है,
जिस दौर से हम गुजरे हैं,
किसीपर भी दिल लगानेकी जुर्रत से
हम अब बहुत डरते कतराते हैं
इब्न ए बब्बन
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