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सिर्फ तुम.....
उनकी नज़रों से राब्ता बनाकर खुद की ज़िंदगी को उनके ही नज़रों से ही देखकर जीने लगा हूँ। उनकी नज़रों से होते हुए उनके दिल से गहरा राब्ता बन गया है। ये मेरा दिल है कि उनके ही ख्यालों में ख़ोकर नज़रों से उन्हें देखने की ललक लिए हरवक़्त हरजगह सिर्फ उनकी ही 'एक तलाश' कर रहा है। उनसे ऐसा रूहानी राब्ता बन गया है कि मैं किसी भी हालात में रहूँ, किसी भी जगह रहूँ, किसी भी हाल में रहूँ और कुछ भी करता हूँ सिर्फ ज़हन में वही बनी रहती हैं। उनसे राब्ता बनते ही ज़िन्दगी की उलझनें कम होने लगी है और ज़िन्दगी में सुकून की 'एक तलाश' उनमें ही होने लगी है।
© गौरव उपाध्याय 'एक तलाश'
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