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हिमांशु बाजपेई कोई खज़ाना नहीं, लोहबान हैं जिसकी खुशबू पूरी दुनिया में जानी चाहिए

Gaurav Singh SengarGaurav Singh Sengar October 4, 2022
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लखनऊ। जिस जगह मेरा जन्म हुआ उस जगह से ठीक 30 किमी की दूरी पर बहुत साल पहले दो लड़कों का जन्म हुआ। अपने पिता से हनक के कुटने वाला आर्य परिवार का लड़का और दूसरा पठान पुलिसकर्मी का बेटा, दोनों मौत से बेखौफ, आज़ादी के लिए बावले और मुल्क से बेपनाह मोहब्बत करने वाले। इन लड़कों की जन्म से लेकर फांसी के फंदे को चूमने की कहानी सुनकर देह में एक सिहरन पैदा होती है। आज हिमांशु बाजपेई से तमन्ना-ए-सरफरोशी की दास्तान सुनकर वो सिरहन पैदा हुई। उन लड़कों का नाम था- रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खां।


हिमांशु बाजपेई की दास्तान सुनना कोई पतंग उड़ाने जितना आसान काम नहीं हैं। उनकी दास्तान रूह तक जाती है, उसे झंकझोड़ती है, सहलाती है और गर्म सलाखों से एक सवालिया निशान छोड़ जाती है जो लंबे समय तक रूह पर रह सकता है। सवाल कि हमारे पास क्या था, सवाल कि हमारे पास जो है क्या हम उसके लायक हैं, सवाल कि क्या हम ये अपनी अगली पीढ़ी को भी दे पाएंगे।


अगर अंग्रेजीदां बच्चे जो होटल मैनजमेंट का कोर्स कर रहे हैं, जो विदेशों में नौकरी का सपना देख रहे हैं, जिन्होंने मंच पर देशभक्ति के नाम पर ‘देश रंगीला’ और ‘कोई कहे कहता रहे हम को भी कितना दीवाना’ जैसे गाने सुने हों वो अगर बिस्मिल और अशफ़ाक को सुनकर रो दें तो मतलब काम की बात हो रही है। हिमांशु कोई खज़ाना नहीं हैं जिन्हें लखनऊ सहेज कर रखे बल्कि वो वह लोहबान हैं जिसकी खुशबू पूरी दुनिया में जानी चाहिए और तसल्ली होती है यह देख कर कि उनकी खुशब

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