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मैंने कविता बनाया भी है और बुना भी,
अब बनाता नहीं , सजाता नहीं, आता तो लिखता बस ऐसे ही कुछ बात बनी,
मुझे मिट्टी से मुलाकात करना है हवा से नहीं,
मुझे दुःख पसंद है सुख बिल्कुल भी नहीं।
कई दिनों से सोया था भीड़ की मार को ढ़ोया,
बुझा हुआ लेकिन सूख चुका ,
आगे बढ़ते रहा यहां नहीं रुकना यहां जीना स्वीकार नहीं।
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