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संघर्ष रहे , श्रम रहे ,
ईमान रहे , सम्मान रहे ,
चाहे जितना कुत्सित चिर काल रहे ,
मैं उतना लिखता जाऊं-गा ,
रत्ती ना रख कर आऊं -गा ,
जैसे भी कटेगा वक्त मैं वैसा लिखता जाऊं -गा।
कितने वादों को तोड़ा है ,
चला सीमित काल फिर छोड़ा है ,
दोहराया जो कर्म करके , संकल्प भी तोड़ा है।
क्या उसके छाया का हो गया हूं मैं?
क्या मैंने खुद ही खुद को जोड़ा है?
ईमान रहे , सम्मान रहे ,
चाहे जितना कुत्सित चिर काल रहे ,
मैं उतना लिखता जाऊं-गा ,
रत्ती ना रख कर आऊं -गा ,
जैसे भी कटेगा वक्त मैं वैसा लिखता जाऊं -गा।
कितने वादों को तोड़ा है ,
चला सीमित काल फिर छोड़ा है ,
दोहराया जो कर्म करके , संकल्प भी तोड़ा है।
क्या उसके छाया का हो गया हूं मैं?
क्या मैंने खुद ही खुद को जोड़ा है?
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