अहंकार हमारा फूट पड़ा है,
सहमा-सहमा रहता बदलते,
सीमा अपना छूट चला है,
बहता न था जो आज बहा है।
पहल बार ये आज हुआ है,
हला-हल विषयों का वार किया है,
उच्चारण का उच्च स्वर से,
जबान नियंत्रण पार रहा है।
तोड़ा मान मर्यादा सारे,
पशुता का व्यवहार रहा है,
अहंकार जो फूट
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