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मैं नहीं जो मैं सोचता , करता हूं ,
लेकिन मैं ही लहुलुहान होता हूं ,
दोहराना आदतों को हो गया है ,
मैं तो बस विषय खोजता हूं ,
मैं अभी जो कह गया , और जो कह रहा हूं ,
सब झूठ है क्योंकि मैं कह रहा हूं ,
मुझमें मैं का अंश बाकी है ,
फिर भी कैसे भूल जाता हूं ,
कैसे खुद को भूल कर मैं ?
कैसे उसमें घुल जाऊ मैं ?
हर तरफ है ये दुःखी लम्हे ,
फिर भी दुःख को छोड़ मैं , सुख की ओर बहता हूं ,
परछाईं हीं परछाईंयों से मैं जानते भी खेल जाता हूं ,
कैसे कर लेता हूं मैं , अवहल को हल कर देता हूं मैं ,
दो धाराएं विचारों के बीचों बीच बसा रहता हूं मैं ,
उनके मुताबिक बहता हूं मैं।
लेकिन मैं ही लहुलुहान होता हूं ,
दोहराना आदतों को हो गया है ,
मैं तो बस विषय खोजता हूं ,
मैं अभी जो कह गया , और जो कह रहा हूं ,
सब झूठ है क्योंकि मैं कह रहा हूं ,
मुझमें मैं का अंश बाकी है ,
फिर भी कैसे भूल जाता हूं ,
कैसे खुद को भूल कर मैं ?
कैसे उसमें घुल जाऊ मैं ?
हर तरफ है ये दुःखी लम्हे ,
फिर भी दुःख को छोड़ मैं , सुख की ओर बहता हूं ,
परछाईं हीं परछाईंयों से मैं जानते भी खेल जाता हूं ,
कैसे कर लेता हूं मैं , अवहल को हल कर देता हूं मैं ,
दो धाराएं विचारों के बीचों बीच बसा रहता हूं मैं ,
उनके मुताबिक बहता हूं मैं।
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