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सागर का एक किनारा हूं।

ganesh Gorakhpuriganesh Gorakhpuri April 21, 2023
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तेरी आँखों के नयनद्वीप का, मैं जगमग एक सितारा हूँ,
तू शीतलता की एक रोशनी-सी, मैं सागर का एक किनारा हूँ।।
सोचता हूँ तुझको हर-पल, देखता हूँ तुझको हर-पल,
जाऊँ कहीं, देखूँ वही, सोचूँ कहीं, मिलूँ  वहीं, और तुझे पढ़ता, बेवक़्त सारा हूँ,
अब तू किसी हीर-सी मुझे लगने लगी, मैं एक राँझा आवारा हूँ।।
मैं सागर का एक किनारा हूँ, मैं सागर का एक किनारा हूँ।।1।।

वह जो तुम्हारा रूप था, मेरी ज़िन्दगी का धूप था,
कैसे यकीं दिलाऊँ तुम्हें, वह किसका स्वरूप था।
ना असरार था, ना टकरार था, बस इश्क़ का गुलज़ार था,
तुम्हारी रेशमी जुल्फे, और वो कान की बाली,
ये हाथों के कंगन, और वो होठों की लाली,
था समय उस रोज,जब इन्हें, भी मैं सँवारा हूँ
अब तू डूबती हुई किसी नाँव सी लगने लगी,
मैं तो बचाने वाला एक पतवारा हूँ,
मैं सागर का एक किनारा हूँ....2 ।।2।।

कुछ लंबे अरसे बाद लड़का क्या कहता है,

क्या करूँ मजबूर था,  हाँ मगर थोड़ा सा दूर था,
चाहत थी हमें भी मिलने की, पर ना मिल पाना ही मेरा क़सूर था।।
तुम तो समझदार थी, तुम्हें ऐसे नही रूठना चाहिए था,
एक बार आयी होती मेरे पास, और पूछती क्या ख़ता हो गयी जो नही आये,
अरे, तुम ही तो मेरी आखरी आस थी, मेरे अधर की प्यास थी।
मगर तुम तो, खुद्दार की मिट्टी से बनी हुई, एक उरबसी हो,
और मैं मुफ़लिसी का मारा हुआ एक बेचारा हूँ
मैं सागर का एक किनारा हूँ....2    ।।3।।

©गणेश गोरखपुरी

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