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बस अब खुद में जीने लगा हूँ
नये नये शौक़ पालने लगा हूँ,
हर रोज़ नये ख़यालात टटोलते हैं मेरे हिज़्र को यूँ
कि बस खुद में कहीं गुम सा ही गया हूँ।
- गजेन्द्र सिंह (अलिख)
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बस अब खुद में जीने लगा हूँ
नये नये शौक़ पालने लगा हूँ,
हर रोज़ नये ख़यालात टटोलते हैं मेरे हिज़्र को यूँ
कि बस खुद में कहीं गुम सा ही गया हूँ।
- गजेन्द्र सिंह (अलिख)
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