
पुस्तक समीक्षा : ज़िन्दग़ी रेल सी
लेखक : पुरुषोत्तम कुमार
प्रकाशक : Notion Press Media Pvt Ltd
गाँव, किसान, खेती, शिक्षा और दहेज प्रथा के साथ साथ घर से बाहर जाकर शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के जीवन का बहुत ही संतोषजनक उल्लेखनीय उपन्यास " ज़िन्दग़ी रेल सी" को का सकते हैं। क्यों कि इस उपन्यास में बहुत ही अच्छे से इन सभी बातों का उल्लेख किया गया है।
रघु इस कहानी का मुख्य किरदार है जो अपने दो और दोस्तों के साथ पटना जा कर इंटर की परीक्षा की तैयारी के साथ साथ जेईई और आईआईटी की परीक्षा की तैयारी भी करते हैं। ये पढ़ना भी एक अलग अनुभव रहा कि किसको कैसे सफलता या निराशा मिलती है। छात्रों को दसवीं के बाद घर से बाहर रह कर पढ़ाई करने पर उनके ऊपर के दबाव और अभाव को भी बहुत अच्छे से दर्शाया है।
जिस सपने, उम्मीद और आशा से छात्र अपना घर छोड़ते है उससे अधिक आशा उनके घर वालों को होती है कि शायद लड़का पढ़ जाए तो आगे की पीढ़ी ख़ूब तरक्की करें। भले ही उनको पढ़ने में गाँव में बाप अपनी ज़मीन बेच दे।
एक गाँव में रहने वाले रघु के पिता अपने बेटे को शहर पटना भेजते हैं और उम्मीद लगते हैं। ख़ुद गाँव में महनत करते हैं। इस उपन्यास में ईमानदारी और बेईमानी के किरदार भी हैं और वो अपनी कर्मो की साझा भी पते हैं। ये पढ़ना भी आपको बहुत बेहतरीन लगेगा।
लेखक परिचय-
पुरुषोत्तम कुमार बिहार राज्य के पटना जिले से है।पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश में पले- बढ़े और बिहार बोर्ड के हिंदी माध्यम से इंटर की पढ़ाई पूरी करके वर्तमान में देहरादून के एक निजी विश्वविद्यालय से वास्तुकला में स्नातक की पढ़ाई कर रहे है।बतौर लेखक ये इनकी पहली पुस्तक हैं।
आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?
दोस्ती, प्यार और पढ़ाई के मेल जोल आपको खूब पसंद आ सकते हैं और साथ ही साथ गाँव में होने वाली बहुत बड़ी सामाजिक अश्लीलता और फूहड़ता को भी बहुत अच्छे से दर्शाया गया है जो बहुत ज़रूरी लगते हैं।
एक पिता अपने बेटे को पढ़ने और बेटी को ब्याहने के लिए क्या क्या जतन कर सकता है इसका भी प्रमाण इस उपन्यास में ख़ूब म
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