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विषय - एक मिलन ऐसा भी हो
शीर्षक - लम्हा - लम्हा
बिखरने वाला हर लम्हा -लम्हा आ समेट लेते है
चल थोडासा महफ़िले जिंदगी की जी लेते है।
एक मिलन ऐसा भी हो कभी जुदाई का गम ना हो
इश्क़ के राह पे साथी एक दुजे को आ बना लेते है।
जो हो रही गुफ़्तुगू उन्हें अपने दिल में सजाना
छिप जाएँगे तहख़ाने में आ कहीं दुर चलते है।
तुम कहा
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