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विषय - एक मिलन ऐसा भी हो
शीर्षक - लम्हा - लम्हा
बिखरने वाला हर लम्हा -लम्हा आ समेट लेते है
चल थोडासा महफ़िले जिंदगी की जी लेते है।
एक मिलन ऐसा भी हो कभी जुदाई का गम ना हो
इश्क़ के राह पे साथी एक दुजे को आ बना लेते है।
जो हो रही गुफ़्तुगू उन्हें अपने दिल में सजाना
छिप जाएँगे तहख़ाने में आ कहीं दुर चलते है।
तुम कहाँ जाओगे यूं रुठ के महताब पर सनम
उफ़ख़ के सह्मै - मैख़ाना में मधु संग डुब जाते है।
कहाँ कुछ है तुम्हारे बिना इस इश्क के मसाफ़त पे
आरज़ू को दिल से कभी बेआरज़ू नहीं किया करते है।
एक किनारा होगा एक दिन हमारे आशियाने का
परदेश नहीं अपने देश में मोहब्बत का बसेरा बना लेते
है ।
वाणी ताकवणे
महाराष्ट्र
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