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जो ना मैं रंगरेज़ रहा,
तो तू भी कहाँ पाक रही
अब रंग रंगीन नहीं
अब कहाँ वो बात रही
मैली जो हो गई गंगा,
कहाँ जा के प्यास बुझाए कोई
सीसे में तू ना दिखे,
ऐसी जतन मुझे सिखाये कोई
जो ना मैं पथिक रहा,
तो तू भी कहाँ पाथ रही
अब रंग रंगीन नहीं
अब कहाँ वो बात रही
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