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युद्धभूमि में शोकाकुल अपने पार्थ को तूने ज्ञान दिया,
विष से व्याकुल जमुना को तूने ही तो विष से पार किया,
दो मुठ्ठी चावल से अपने सखा का भी उद्धार किया,
छोटी सी उंगली पर तूने पर्वत को जैसे थाम लिया,
मेरे जीवन की कश्ती को ऊँची लहरों में थाम ले,
बनजा मेरा खेवैया, अपने चरणों में मुझको स्थान दे ||
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