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कोई शीशा नहीं होता,कोई पत्थर नही होता,,
गम ठहरे हैं यहीं लेकिन, कोई दिल घर नहीं होता,,
जिसको मालूम है इतना, चाहत का है सफ़र मुश्किल,,
उसको पंडित सफ़र में फिर, कोई भी डर नहीं होता,,
✍️पंडित नरेन्द्र द्विवेदी✍️
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