
Share0 Bookmarks 24 Reads0 Likes
जो क़समे मोहब्बत की खाते रहे....
'वो' नज़रें झुकाये चले जा रहे....
हम फासलों की दीवारें गिराते रहे....
और 'वो' दूरी बढ़ाए चले जा रहे....
काश ऐसा जो होता कि 'वो' होता नहीं....
दिल अक्सर यूँ ख़ामोश रोता नहीं....
हमने वो भी क़ुबूला जो किया था नहीं....
और 'वो' दामन बचाये चले जा रहे....
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments