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साँसों के आरोह-अवरोह में,
रिश्तों के, मिलन-विछोह में,
जीवन के सभी उहा-पोह में,
तू बस याद मुझको आती है!
विहगों की, ऊँची, उड़ान में,
ऊँचे नीले इस, आसमान में,
जीवन के, समस्त प्रमाण में,
तू बस मुझको दिख जाती है!
फूलों के महकते उपवन से,
अगरबत्ती और ये चन्दन से,
तेरे इस, अप्रतिम, यौवन से,
मेरी साँस यूँ महक जाती है!
अजंता की तू, चित्र सजीव,
तेरे बदन से हो, इत्र सजीव,
कली बनें तेरी मित्र सजीव,
तू तो मधुशाला मदमाती है!
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