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सज़दा मांगो तो मिलता नहीं है, बल्कि सज़दा हो जाता है,
दीदार मांगो तो मिलता नहीं है, दीदार रब दा हो जाता है!
यूँ तो रुस्वाइयाँ भी होती है हमसे, राज़ी भी हमसे होते हैं,
धोख़ा भी हम खाते हैं फिर भी ऐतबार सब दा हो जाता है!
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