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बेमतलब किर्तास का पुलिंदा हो गया,
सोया था जो हर्फ़ फिर ज़िंदा हो गया!
छपने भेजा था जो नग़्मा, सच से भरा,
जिसने भी पढ़ा उसे, शर्मिंदा हो गया!
मरे कितने सुख़नवर यूँ सच बोलकर,
कलाम बच निकला, परिन्दा हो गया!
ख़िल्जियों ने फ़ौत किये, क़ुतुब-खाने,
नग़्मा था हुमा, जल के ज़िंदा हो गया!
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