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हक़ीक़तनामा "---
कैसा दुनियादारी का बाज़ार सजा कर रक्खा है ।
मौत का , गरीब की मज़ाक बना कर रक्खा है ।।
जो रहा करते थे....... ख़्वाबों की अंजुमन में ।
उन्हें हक़ीक़त का आईना दिखा कर रक्खा है ।।
हम मरीज़ ए इश्क़ हैं , .....ये अब पता चला है ।
हमने
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