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नाजुक थी वोह कठोर भी
शांत थी था उसमे शोर भी।
रेशम के धागे में लगी
सुई की तरह,
पिरोती सपने,
छुभ जाती थी कभी।
मौन शंख के अभ्यंतर
से आती समुद्र की गरज सी।
नाजुक थी वो, कठोर भी
शांत थी, था उसमे शोर भी।
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