
Share0 Bookmarks 103 Reads1 Likes
कभी लगता है ज़िंदगी बहुत तेजी भाग रही
कभी लगता वो छुपकर ख़िड़की से झांक रही
कभी लगता है वो मेरी आँखों में जाग रही
ना जाने क्या मेरी ख़ामोशियों में ताक रही
इस दिल में उठते जज़्बातों को ग़मनाक रही
लग रहा मेरी दिली ख़्वाहिश को हलाक रही
घात लगाकर मेरे वक़्त-ए-अजल को ताक रही
दिल में उठते जज़्बातों को पर्दों से ढांक रही
मेरे दिल में उठी बेचैनी की हदों को आँक रही
चुपके-चुपके मेरी जीने की तमन्ना ख़ाक रही
#तुष्य
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments