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तुम्हारे बगैर सफ़र-ए-हयात में गर्द-ए-सफ़र हो गए हम
ज़िंदगी की जद्दोजहद में मसरूफ़-ए-सफ़र हो गए हम..
नहीं मालूम मुझको आखिरी बार कब जी भर के जिया
उजड़े हुए चमन के परिंदों की तरह मफ़र हो गए हम..
तेरा तसव्वुर कहाँ मुझे अब मुझे ख़ुद का ही पता नहीं
ज़िंदगी की कश्मकश में ख़ुद से यूँ बेख़बर हो गए हम..
तुम ही तो थीं मेरी जिंदगी तुम से ही था मेरा जहान
अब तुम्हारे बगैर इस नार-ए-सक़र में सिफ़र हो गए हम..
मेरे कारवाँ में चलने वाले एक-एक कर ऐसे रुख़्सत हुए
कि नींद में टूटे ख्वाबों की तरह तितर-बितर हो गए हम..!!
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