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ज़िंदगी गुजर रही मेरी एक मुल्ज़िम की तरह
ज़ुर्म इतना कि तुम्हें खोने की सज़ा पा रहा हूँ..
तेरी यादों में मैंनें ख़ुद को यूँ बिख़रा दिया है
अब अपने ही टुकड़ों को कंधों पर ढोए जा रहा हूँ..
ये रौनक़ देखकर मुझे तुम्हारा ख़याल आता है
पर मैँ सर-ए-बाज़ार में अकेले ही चले जा रहा हूँ..
क्या बद-दुआ मिली मुझे जो तेरा हाथ यूँ छूटा
मैं ख़ुद को अपनी ही बाँहों में समेटे जा रहा हूँ..
अब मेरी आँखों में न नींद है न दिल में क़रार है
मैं सैल-ए-अश्क़ में तिनके की तरह बहे जा रहा हूँ..
अब ये दर्द-ए-जुदाई नहीं सही जा रही मुझसे
वापस लौट आओ मैं अपनी जिंदगी खोए जा रहा हूँ..!!
#तुष्य
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