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युद्ध न खुद सोता है न ही किसी इंसा को सोने देता है
ज़िंदगी भर संजोए ख़्वाबों को बिखेर हमें न रोने देता है..
ख़ूबसूरत बस्तियों को उजाड़ उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
युद्ध तिनके जोड़ बनाए आशियानों को न संजोने देता है..
मौत और बर्बादी इसके दो दोस्त जो बिन बुलाए आते हैं
युद्ध ज़िंदगी तबाह कर लाशों को कंधे पर न ढोने देता है..
ज़हर-ए-ग़म का सैलाब उमड़ता है दरिया-ए-दर्द में मिलकर
युद्ध ज़ख़्म-ए-हयात बन दर्द-ए-हयात ठीक न होने देता है..
दौर-ए-बर्बादी देख इंसा रोना भी चाहें तो वो रो नहीं पाता
युद्ध नए सपने संजोने के लिए पलकें तक न भिगोने देता है..!!
#तुष्य
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