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आज फ़िर उनके आलम-ए-तसव्वुर ने सताया है मुझे
जैसे सहरा-ए-दिल में दो बूंद इश्क़ ने तरसाया है मुझे..
आज जब सुनहरी यादों के पन्नों को पलट कर देखा
उसमें रखा हुआ वो सूखा गुलाब नज़र आया है मुझे..
उस मुरझाए गुलाब की ख़ुशबू से खिल उठा दिल मेरा
उसको देख आँखों के सामने बिता कल नज़र आया है मुझे..
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