
मेरे ख़ामोश लबों की मुस्कान हो तुम
मेरी नज़्म-ए-ज़िंदगी की जान हो तुम
बस तेरी ही उल्फ़त में लिखी ये ग़ज़ल
मुझ अहल-ए-क़लम की पहचान हो तुम..!!
तेरे नाम से ही लफ़्ज़ों में आ जाती जान
मेरी नज़्मों की ख़ुशबू-ए-ज़ाफ़रान हो तुम
अज़ीब उदासी रहती बिन तेरे महफ़िल में
क्योंकि इस बज़्म-ए-अख़्तर की शान हो तुम..!!
बेशक हक़ीकत से दूर हो मौजूदगी तेरी
पर मेरी ख़्वाहिशों का इत्मीनान हो तुम
ज़िंदगी के उजाले खो रहे सियाह अँधेरों में
मेरी ज़िंदगी के अँधकार में रोशनदान हो तुम..!!
तेरे वजूद की खुशबू बसी मेरी साँसों में
मेरे दिल-ए-मुज़्तर का अरमान हो तुम
मरीज़-ए-मोहब्बत हो गया तेरी यादों में
दास्तान-ए-मोहब्बत का उनवान हो तुम..!!
#तुष्य
अहल-ए-क़लम: साहित्यिक स्वभाव के आदमी, ख़ुशबू-ए-ज़ाफ़रान: केसर की ख़ुशबू, बज़्म-ए-अख़्तर: सितारों की महफ़िल, दिल-ए-मुज़्तर: अशांत ह्रदय, उनवान: शीर्षक
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