सफ़र-ए-ज़िंदगी (Part:5)...'s image
Poetry1 min read

सफ़र-ए-ज़िंदगी (Part:5)...

Dr. SandeepDr. Sandeep October 27, 2022
Share0 Bookmarks 58956 Reads2 Likes

सुबह सफ़र शाम सफ़र ज़िंदगी का मक़ाम सफ़र

बिना रुके चलते रहना देता है ये पयाम सफ़र..

मतलब की दुनिया में कोई नहीं चलेगा साथ तेरे

तुझको ख़ुद चलना होगा बिना करे आराम सफ़र..

कहने को तो हर मोड़ पर मिलेगें हम-सफ़ीर कई

पर उसमें से साथ चलगें जो न करें क़याम सफ़र..

हरक़दम ज़िंदगी लेगी इस सफ़र में इम्तिहान तेरा

पर तू न रूकना चलते रहना सहर-ओ-शाम सफ़र..

यहाँ रुकने, ठहरने वालों की ज़िंदगी होती हराम है

मुसीबत से लड़नेवाले को करता जहाँ सलाम सफ़र..

पर सफ़र-ए-शौक़ में मंज़िल को ना भुला देना यार

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts