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ख़ामोशी से ज़िंदगी बसर कर रहा हूँ
ख़्वाबों के फ़लक पर सफ़र कर रहा हूँ..
राह पर हर एक रंज-ए-सफ़र उठाते हुए
जिस्म पर गर्द-ए-सफ़र मफ़र कर रहा हूँ..
जब से इश्क़ की इमारत ग़मों ने ढाई
टुकड़ो-टुकड़ो ज़िंदगी बसर कर रहा हूँ..
अब उनको इक पल साथ नहीं गवारा मेरा
अब दौर-ए-अय्याम में राह-ए-गुज़र कर रहा हूं
उनके हसरत-ए-दीदार को तरस गई आँखें
ये नज़्म मेरे मुर्शिद को नज़र कर रहा हूँ..!!
#तुष्य
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