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आज भी मेरे आँगन में घने पेड़ो जैसी छाँव है
क्योंकि मेरे उस आँगन ऊपर पिता ने रखी बाँह है..
सर छुपाते हैं उस दर जहां पिता ने रखा पाँव है
कच्चे रास्तों पर बना हुआ वो पक्का मेरा मकाँ है..
जब थे वो दुनियाँ में तो रहती थी मेरी शहाँ है
आज भी उनकी बदौलत फ़क़ीरी में भी गुमाँ है..
खुद रहते थे वो धूप में लेकिन मेरे ऊपर छाँव है
मुझको अपने कँधे पर बिठा घुमाया पूरा जहाँ है..
आज उनकी वजह से ही मैंने पाया ये मुकाँ है
मुझ मुसाफ़िर-ए-सफ़र की कश्ती-ए-उम्मीद रवाँ है..
वो ही मेरी धरती और वो ही मेरा आसमाँ है
वो ही मेरी ताकत और वो ही मेरी पहचाँ हैं..
मेरे अंदर जो धड़कती उनकी ही ये जाँ हैं
एक बीज था जो मैं आज दरख़्त बन जवाँ है..!
#तुष्य
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