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नूर-ए-क़लम (Part-4)

Dr. SandeepDr. Sandeep December 23, 2021
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मैं हूँ लफ़्ज़ों का व्यापारी तुम हो पढ़ी लिखी नारी

कितना भी करूँ कोशिश लफ़्ज़ों पर पड़ती हो भारी..

शब्दों के साथ खेलना सबको तुमसे सीखना चाहिए

क्योंकि जैसे खेलती हो अच्छों की उतर जाती ख़ुमारी..

ख़ूबसूरती से अल्फ़ाज़ों में बटोर लेती हो जज़्बातों को

आख़िर कहाँ छिपा रखी है जज़्बातों से भरी ये पिटारी..

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