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जज़्बातों भरे अल्फ़ाज़ों में बे-मिसाल हो तुम
काग़ज़ पर उतारे एहसासों में बा-कमाल हो तुम..
लफ़्जों की ज़रूरत नहीं तेरी ख़ामोशी पहचानता हूँ
क्योंकि मुझ अहल-ए-क़लम की हम-ख़याल हो तुम..
कोई बनावट नहीं छिपी है इस हुस्न-ए-अज़ल के पीछे
लख़नवी अंदाज़ में सादगी की परी-जमाल हो तुम..
इस अंदाज़-ए-बयाँ पर कौन ना मर जाए ऐ ख़ुदा
उस फ़नकार का जमीं पर उतारा शाहकार हो तुम..
ऐ नूर-ए-क़लम क्या तारीफ़ करूँ मैं तेरी क़लम की
एहसासों भरी इन नज़्मों की पैग़ाम-ए-बहार ह
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