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सुनो हमदर्द मेरे मुझसे नाराज़ न होना
मुझे अज़ीब सी आदत है भूल जाने की
मुझ ख़तावार की ये गलती माफ़ करना
नहीं थी कोशिश तुम्हारा दिल दुखाने की..!!
मैं तेरे ग़ैरत-ए-जज़्बात पहचान ना पाया
नहीं थी हरकत तुझे तकलीफ़ पहुँचाने की
मुनासिब हो तो सितमगर को माफ़ करना
नहीं थी शरारत हम-सफ़ीर तुझे सताने की..!!
मुझ अहल-ए-क़लम से यूँ मुँह ना मोड़ना
मान जाओ तुम्हें क़सम अपने दोस्ताने की
तेरे लिखे लफ्ज़-ए-जज़्बात को पहचानता हूँ
तेरे सिवा नहीं कोशिश और किसी को मनाने की..!!
#तुष्य
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