
मेरी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है
तुझसे मिलने को दिल बेक़रार आज भी है
जानता हूँ मिलने की उम्मीद नहीं तुमसे
पर तू मेरा ख़याल-ओ-ख़्वाब आज भी है..!!
महफ़िल में उन्हें होगी ग़रज़ किसी और की
पर मुझे तेरा हसरत-ए-दीदार आज भी है
अब किसी और के तसव्वुर को उठती नहीं नज़र
इन फ़रेबी नज़रों में थोड़ी अख़लाक़ आज भी है..!!
कभी तो लौट के आओगे अपने माज़ी के पास
इसी उम्मीद में ये जिस्म आबाद आज भी है
ज़ख़्म-ए-जिगर को अश्क-ए-ग़म से धो रहा हूँ
फ़स्ल-ए-बहाराँ में भी शाख़ बेज़ार आज भी है..!!
अगर यकीन नहीं तुझे तो आज़मा कर देख लो
क्योंकि मुझे तुझपर यक़ीन-ओ-एतबार आज भी है
मुझ पर चढ़ा कुछ इस तरह वो तेरा ही ख़ुमार है
मुझे तुझ से उतना ही बेशुमार प्यार आज भी है..!!
#तुष्य
ख़याल-ओ-ख़्वाब: कठिन और असंभव, तसव्वुर: कल्पना, अख़लाक़: शिष्टाचार, माज़ी: अतीत, फ़स्ल-ए-बहाराँ: वसंत ऋतु, यक़ीन-ओ-एतबार: भरोसा और यक़ीन, ख़ुमार: प्रेम का नशा
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