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मेरे ख़ुदा मुझे तुझ से कोई गिला नहीं
नसीब नहीं था इसलिए कुछ मिला नहीं..
गुलिस्तान-ए-ज़िंदगी मेरी ऐसी उजड़ी
बहार आई पर शाख़ पर फूल खिला नहीं..
ज़हर-ए-ग़म बन गई है ये ज़िंदगी मेरी
अब आब-ए-हयात को भी दिल मुब्तला नहीं..
ना जाने कहाँ गुम हो गया है मेरा वज़ूद
मुझको मुझ में ही अक्सर मैं मिला नहीं..
वक़्त से लड़ नसीब बदलने की थी कोशिश
वो इंसान हूँ जिसकी लकीरों में कुछ लिखा नहीं..!!
#तुष्य
गुलिस्तान-ए-ज़िंदगी: जीवन का उद्यान, ज़हर-ए-ग़म: विष समान दुख, आब-ए-हयात: अमृत, मुब्तला: आसक्त
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