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माना अनजान हूँ पर ये लफ़्ज़-ए-एहसास जानता हूँ
दर्द-ए-अल्फ़ाज़ की वजह से उसे अपना मानता हूँ..
क़लम बता देती है कि उधर क्या उठा सवाल है
सैकड़ों लफ़्ज़ों में भी उसकी लिखावट पहचानता हूँ..
अपनी मुस्कुराहट के पीछे दर्द-ए-ग़म छिपा रखे हैं
उसके आँखों से गिरते मोती की क़ीमत जानता हूँ..
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