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चलो आज आपके हर लफ़्ज़, हर अल्फ़ाज़ सुनते हैं
आपके साथ बिताए गुज़रे लम्हों को यादों में बुनते हैं..
इन आँखों में बसे ख़्वाब सैल-ए-अश्क़ में बह न जाएं
चलो सबसे पहले आँखों में बिख़रे हुए सपने चुनते हैं..
उजड़ी हुई गुलिस्तान ए ज़िंदगी को सँवारने के लिए
चल आ इस छोटे शहर में फ़िर अपनी दुनिया बुनते हैं..
पर इस दुनिया का देखो कितना ही अजीब दस्तूर है
उदासी पर सवाल करते मुस्कुराऊँ तो जलते-भुनते हैं..
यहाँ लोग जो सुन ना चाहते हैं वो ही सिर्फ सुनते हैं
पर हम बाग़-ए-इश्क़ में गुल-ए-चमन को चुनते हैं..!!
#तुष्य
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