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तेरे एहसास-ए-इश्क़ का जिस किताब में क़िस्सा है
वो मेरी किताब-ए-हयात का बेहतरीन हिस्सा है..
कई बार की मैंने उस किताब को पढ़ने की कोशिश
तेरे अल्फ़ाज़ों का मेरी क़लम से राहत-ए-रूह का रिश्ता है..
मेरे कमरे में चँद किताब-ए-ज़ीस्त के सिवा कुछ भी नहीं
हक़ीक़त में इन किताबों में आलम-ए-तक़दीर नविश्ता है..
किताबें आईना हैं जो राह-ए-हक़ीक़त से रूबरू कराती है
किताब-ख़ाने में इस बात का ज़िक्र करता वो फ़रिश्ता है..
यूँ तो इस बज़्म-ए-अख़्तर में साहिब-ए-किताब हैं बहुत
पर नूर-ए-क़लम की हर नज़्म आइना-ए-उम्र-ए-गुज़िश्ता है..!!
#तुष्य
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