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मुख़्तसर हैं उम्मीदें लेकिन ख़्वाहिशें बे-शुमार
क्या करूँ नहीं होता कम तेरे इश्क़ का ख़ुमार..
ना जाने क्यों मुझे तेरी ऐसी आदत पड़ गई
अब इश्क़ के मरीज़ों में मेरा भी नाम हुआ शुमार..
यादें तेरी मेरे दिल-ओ-दिमाग पर यूँ हावी हो रही
कहीं दिल-ए-मुज़्तर ना हो जाए इस फ़िक्र में बिमार..
बद-गुमाँ है तेरी बज़्म-ए-अख़्तर में आज हर कोई
कहीं देख इसे ना हो जाऊँ मैं दिल-ए-बद-क़िमार..
वो आशिक ही क्या जो इश्क़ में फ़ना ना हो पाए
मैं भी तेरी ख़ातिर अपनी ख़्वाहिशों को दूँगा मार..
बस एक बार लहरा दे अपने बिखरे सि
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