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इंसान कुछ और नहीं गलतियों का पुतला है
चलता फिरता बस मिट्टी से बना कुठला है..
मुसाफ़िर है इश्क़ करता है दिल भी लगाता है
लेकिन जज़्बातों और ज़मीर से बहुत उथला है..
सुरूर है गरूर है नशा कोई जरूर लगाता है
लेकिन ख़ूबसूरती देख वक्त की रेत सा फिसला है..
दूसरों की कमियां को ज़ोर-श
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