
नज़र-ए-मोहब्बत का अलग ही सुरूर है..
मिल जाए तो हूर खो जाए तो नुशूर है..
किताब-ए-हयात की कहावत ये मशहूर है..
मोहब्बत का भी यारों अलग ही दस्तूर है..
संदल सा जिस्म चाहता हर कोई हुज़ूर है..
मिला तो सूर नहीं तो शीशा-ए-दिल चूर है..
जिंदगी भर का साथ सबको नहीं मंजूर है..
जो साथ निभा जाए उससा नहीं कोई शूर है..
पर मुझे नहीं मिली तो मेरा क्या क़ुसूर है..
मैंने किया था प्यार पर वो लड़की मग़रूर हैं..
अपनी दौलत-ए-हुस्न का उसको बड़ा ग़ुरूर है..
पर मुझसा ना कोई उसका चश्म-ए-मख़मूर है..
राह-ए-इश्क़ में चलते हुए दिल-ए-ना-सुबूर है..
हसरत-ए-दीदार के लिए एक तलब ज़ुहूर है..
तेरा ये तलबगार मय-ख़्वारों से बहुत दूर है..
चश्म-ए-मय की साक़ी थोड़ी चाहत ज़रूर है..
इज़हार-ए-मोहब्बत मेरे प्यार का तो भरपूर है..
उस दिल-ए-सख़्त को मोम करना बिज़्ज़रुर है..
एकदिन अपना बनाऊँगा मुझमें इतना मक़्दूर है..
मुझ को चढ़ा है जो वो तेरे इश्क़ का फ़ितूर है..!!
#तुष्य
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments