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नज़र-ए-मोहब्बत का अलग ही सुरूर है..
मिल जाए तो हूर खो जाए तो नुशूर है..
किताब-ए-हयात की कहावत ये मशहूर है..
मोहब्बत का भी यारों अलग ही दस्तूर है..
संदल सा जिस्म चाहता हर कोई हुज़ूर है..
मिला तो सूर नहीं तो शीशा-ए-दिल चूर है..
जिंदगी भर का साथ सबको नहीं मंजूर है..
जो साथ निभा जाए उससा नहीं कोई शूर है..
पर मुझे नहीं मिली तो मेरा क्या क़ुसूर है..
मैंने किया था प्यार पर वो लड़की मग़रूर हैं..
अपनी दौलत-ए-हुस्न का उसको बड़ा ग़ुरूर है..
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