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हमने भी ऐलान-ए-मोहब्बत कर बग़ावत की थी
उनके लिए आलम-ए-दुनिया से अदावत की थी..
जब सारा ज़माना था हमारी मोहब्बत के ख़िलाफ़
तब जोश-ए-इश्क़ में आ इज़हार-ए-हिमाकत की थी..
जब उनके हसरत-ए-दीदार को तरस गई थी आँखें
तब मल्लिका-ए-हुस्न की तस्बीह पे तिलावत की थी..
दरिया-ए-इश्क़ में डूब जाना तो लाज़मी ही था मेरा
शराब सी नशीली आँखों ने जो ऐसी क़यामत की थ..
कभी उनके आगोश में सर रख हो जाता था मदहोश
मैंने बिखरी हुई ज़ुल्फ़ों के साथ थोड़ी शरारत की थी..
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