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दास्तान-ए-दोस्ती...

Dr. SandeepDr. Sandeep November 18, 2021
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जब तेरे लफ़्ज़ों ने दर्द-ए-ग़म की चीख़ों को सुनाया

तो मैंने दिल के कहने पर अपना ये क़लम उठाया

तेरे जज़्बात-ए-दिल ने मुझे दर्द का एहसास कराया

पर अपने दर्द-ए-दिल को क्या मुझको खुलकर बताया

अपने ज़ख़्मों को कुरेद कुरेद कर ख़ुद को क्यों दुखाया

क्यों अपनी मुस्कुराहटों के पीछे अपने आँसू को छुपाया

जिसने तुझे दुख पहुँचाया तुमने उसी को दिल में सजाया

तुमने इस तरह ख़ुद को चोट पहुँचाकर मुझको बहुत सताया

जब घाव होने लगे गहरे तब भी कोई जवाब ना आया

अगर तुम दोस्त समझते हो तो मत सोचो मुझे पराया..!!

#तुष्य

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