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ना कोई दस्तक थी ना ही कोई आहट थी
फिर दरवाज़े पर ये किसकी सरसराहट थी
शायद मेरे दर्द-ए-ग़म दबे पाँव ख़िसक रहे थे
दिल में ख़ुशियों की आई जो जगमगाहट थी..!!
मुद्दतों ज़िंदगी की उलझनों में उलझा रहा
शायद मेरे अंदर कुछ अज़ीब सी छटपटाहट थी
पर वक़्त से लड़ नसीब बदलने की थी कोशिश
आसमाँ छूने को मेरे पंखों की जो फड़फड़ाहट थी..!!
आज अरसे बाद फ़िर उनसे कुछ यूँ मुलाक़ात हुई
कि दिल्ली की सर्द हवाओं में छा गई गर्माहट थी
उनके मिलते ही मेरी जीने की तमन्ना जाग उठी
गुलिस्तान-ए-ज़िंदगी में फिर छाई कुछ ऐसी मुस्कुराहट थी.!!
#तुष्य
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