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निकल पड़ा था उस राह पर जिसका कोई मक़ाम ना था
एक मोड़ आया रुक कर पीछे देखा तो कोई तवाम ना था..
टूट गई थी सारी ख़्वाहिशें मंज़िल-ए-मक़सूद को ढूँडने में
उस अंजान रास्ते पर आगे मीलों तक कोई निशान ना था..
थक हार कर बैठ गया ये मुसाफ़िर डगमगाते क़दमों के साथ
उस पथरीले रास्ते पर ज़ख्मों को भरने का कोई इंतिज़ाम ना था..
कहते हैं काँटों भरे रास्तों पर चलकर ही मंज़िल पाई है सबने
पर इस दिल को उस नए रास्ते का ख़यालात-ए-ख़ाम ना था..
ये रास्ते आसान नहीं होते हर मोड़ पर यूँ परेशान नहीं होते
एक अंजान हम-सफ़ीर के उन लफ़्ज़ों से बड़ा कोई पयाम ना था..!!
#तुष्य
तवाम: जुड़ा हुआ, हम-सफ़ीर: मित्र, मंज़िल-ए-मक़सूद: आशय, पयाम: संदेश, ख़यालात-ए-ख़ाम: अनुभवरहित ख़्याल
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