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मेरे सारे ख़्वाब अभी मेरी आँखों में सोए हुए हैं..
किसी के आलम-ए-तसव्वुर में खोए हुए हैं..
एहसासों को अश्क़ों के मोतियों से पिरोए हुए हैं..
उनके ख़्यालों में इन पलकों को भिगोए हुए हैं..
ख़्वाहिशों का ख़ून कर हाथों को धोए हुए हैं..
अपने अरमानों की लाश को कँधों पर ढोए हुए हैं..
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