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आज दिवाली है पर रोशनी से मैं डर रहा हूँ..
अंधेरे की चादर ओढ़ अंदर मैं जल रहा हूँ..
तेरी यादों में बेसुध होकर चल रहा हूँ..
बहते हुए अश्कों से अपनी पलकें भर रहा हूँ..
रेत के ज़र्रे की मानिंद हर लम्हा बिखर रहा हूँ..
दीवानों के माफ़िक़ तन्हाई से बातें कर रहा हूँ..
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