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ना जमीं की चाहत है ना आसमाँ की चाहत है
आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार हूँ बस उस की राहत है..
आजा क़रीब इतना की मेरी साँसों को महका दे
तेरे जिस्म की ख़ुशबू की चारों ओर बरसात है..
तेरे इश्क़ का सुरूर कुछ यूँ चढ़ रहा मेरे ऊपर
आज दीवार-ए-जिस्म गिए
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