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क्यों मुश्किलों की धूप में तिल तिल जलूँ

जब मेरे भीतर साहस के असंख्य सूर्य हैं छिपे l

क्यों प्रतिफल की परवाह कर किनारे पर रहूँ

जब मेरे भीतर प्रयासों के अथाह समंदर हैं भरे l

क्यों निराधार असत्य

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