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संघर्षों से ना भागो तुम
इन संघर्षों में ही तो हित है l
हर एक क्षण की कीमत है
और समय बहुत ही सीमित है l
अपनी अंतर्ध्वनि गुंजायमान करो
और अंतस की पदचाप सुनो l
ढूंढ रही शाश्वतता कब से तुमको
परिनिष्ठित हो हर क्षण में समा लो उसको l
सब्र का वजूद विकलता में हो ना कहीं गुम
अविरत ही सफलता के नये पर्याय बनो तुम l
डॉ. रूचि शर्मा 'सिसृक्षा'
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