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सदियों से
जमी जड़ता को तोड़
अन्याय से स्याही निचोड़
अधिकारों का नया सवेरा लिख देता है
जब क्रांति करता है
महज धूप का एक छोटा सा टुकड़ा
अत्याचारों से डरे सहमे
कुम्लहाये से मन में
सत्यमेव जयते
का विश्वास जगा देती है
जब क्रांति करती है
महज एक निर्भीक कलम
घटाटोप अंधकार
प्रतिकूल हवाओं के मन में
सिहरन भर देता है
जब क्रांति करता है
महज एक नन्हा सा दिया
सर्वहारा के अधिकार के लिए
अन्याय की मरुभूमि में भी
क्रांति बीज बो देती है
शहीदों के बलिदान से निकली
रक्त की महज एक बूंद
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